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टूटती मर्यादाओं का दोषी कौन ?

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“मर्यादा” सिर्फ महिलाओं के लिए नहीं बनी,अपितु पुरुषों पे भी उतनी ही उत्कटता से लागू होती हैं | परन्तु आज हमारे समाज में मर्यादाये बनाने वाले कम और तोडने वाले ज्यादा है |देश मे दिन – ब- दिन महिलाओ के प्रति बढती वि-वृत्तीयां बयां करतीं हैं की कौन मर्यादित है और कौन नहीं ! दुष्कर्म ,घरेलू हिंसा ,छेड़-छाड ,एसिड अटैक ,बलात्कार जैसी अनेक दुर्घटनाएं सिर्फ महिलाओं के साथ होती है|कभी नहीं सुना -“किसी पुरुष पर उसकी प्रेमिका ने,उसके प्रेम को ना स्वीकारने पर एसिड डाल दिया”,”किसी महिला ने दारू पी कर राह चलते नौजवान के साथ छेड-छाड़ की ” , “किसी महिला ने देर रात किसी नाबालिग या बालिग को अपनी हवस का शिकार बनाया” या फिर .”किसी पत्नी ने अपने पति को पीटा ” |
क्या एक भी व्यक्ति उस तीन वर्षीय लड़की गुडिया,उस २४ वर्षीय लड़की दामिनी,एसिड अटैक की सभी प्रताड़ित और इनके जैसी असंख्य नारियों के इस प्रश्न का उत्तर दे सकता है -“मेरा क्या कसूर था ?”
उन गुनाहगारों की गिरफ़्तारी देश की जनता के गुस्से को तो शांत कर देगी पर क्या उन पीड़ितों के अंतर-मन के मर्म को समझने मे सक्षम होगी ?कुछ के सपने तो उस हादसे के बाद ही टूट गए ,कुछ की जान चली गई और कुछ आज भी उस बीभत्स कल्पना से जूझ रही है और अपना जीवन एक जिन्दा लाश की तरह व्यतीत करने पर मजबूर हैं |क्या वे बच्चिया अपनी जिन्दगी की उन्नति की सीढियों को दुबारा चढ़ने की हिम्मत जुटा पाएंगी?अपने उन छोटे-छोटे ख्वाबों मे दुबारा रंग भरने मे सक्षम होंगी ?
आज कहाँ हैं वह खाप पंचायत और उसके नियम कानून,जिन्होने स्त्रियों के पहनावे पर प्रतिबन्ध लगाये,उनके बोल – चाल के तरीकों,रहन-सहन और पुरुष -मित्र बनाने पर सवाल खडे किये थे? कहा है वह संविधान जिसने “बलात्कार” की सजा सिर्फ ७ साल कारावास चिन्हित कर रक्खा है,और तो और एसिड अटैक की कोई निश्चित सजा मुक़र्रर नहीं की जाती ?कहा है वे लोग जो दो दिन उस पीडिता के मर्म का बाजारीकरण करके पुलिस के डर से चुप हो गए ? और कहा हैं हमारे राज नेता जिन्हे हमने अपनी सेवा के लिए चुना,न की सरकारी कुर्सी की चापलूसी करने के लिए|मर्यादाओं का उल्लंघन तो उपरोक्त सभी कर रहे हैं |
एक व्यक्ति स्त्रियों के पहनावे पे उन्हे टोकता है.दूसरा उनके रहन-सहन पर और तीसरा उन्हे मर्यादाओं का पाठ पढ़ा कर चला जाता है परन्तु उस ३ साल की मासूम लडकी की क्या गलती थी जिसका वीभत्स रूप से बलात्कार हुआ और उस १२ साल की तबस्सुम का जिसने दुनिया भी ढंग से नहीं देखी थी | उनका तो अभी इन सामाजिक मर्यादाओं से कोई सरोकार भी नहीं था | यदि महिलाओं का देर रात घर आना,अपने पसंद के वस्त्र धारण करना ,घूमना -फिरना आदि मर्यादाओं का उल्लंघन है तो पुरुषों का महिलाओं को गलत नज़रो से देखना,उन्हे उत्पीड़ित करना भी मर्यादाओं का उल्लंघन ही है |
पूर्ण रूप से यदि देखा जाये तो हमारा समाज दो वर्गों मे बंटा हैं-महिला और पुरुष | दोनों का ही मर्यादा मे रहना अति आवश्यक है अन्यथा हर दूसरे दिन कोई न कोई नारी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से किसी न किसी पुरुष की हवस का शिकार बनती रहेगी,न्याय पालिका और पंचायतों की बुनियाद खोखली होती जाएगी तथा लोगो का विश्वास टूटता जायेगा |

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